स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी 1863 में हुआ था । स्वामी विवेकान्द का बचपन का नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। वे केवल सन्त ही नहीं, एक महान देशभक्त, वक्ता, विचारक, लेखक, समाज सुधारक और मानव प्रेमी भी थे । इनके जन्म दिन को आज भी पुरे देश में “राष्ट्रीय युवा दिवस” के रूप में माने जाता है । इनके गुरु का नाम रामकृष्ण परमहंस था ।
जन्म | 12 जनवरी 1863 |
जन्म स्थान | कोलकाता |
मृत्यु | 4 जुलाई 1902 |
मृत्यु स्थान | बेलूर, पश्चिम बंगाल, भारत |
जीवनकाल | 39 वर्ष |
विवाह | अविवाहित |
गुरु | रामकृष्ण परमहंस |
पिता | विश्वनाथ दत्त |
बचपन से ही विवेकानंद प्रखर बुद्धि के थे जिसकी वजह से उन्होनें 3 साल का कोर्स एक साल में ही पूरा कर लिया। वेद, उपनिषद भगवद् गीता, रामायण, महाभारत और पुराणों के अतिरिक्त अनेक हिन्दू शास्त्रों में गहन रूचि थी ।
उनका अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के प्रति अनन्य प्रेम और निष्ठा प्रेम था । वह सच्चे गुरु भक्त थे | साल 1883 में उनके द्धारा शिकागो, अमेरिका में आयोजित हुए विश्व धर्म सम्मेलन में हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व किया ।
उन्होंने इस भाषण की शरुआत “मेरे अमेरिकी भाइयो और बहनों” के साथ शुरू की थी | जो की सबको बहुत पसंद आया ।
विश्व धर्म सम्मेलन में दिए गए भाषण को आज भी लोगों ने याद रखा हुआ है. उस समय उनकी उम्र मात्र 30 वर्ष की थी ।
स्वामी विवेकानन्द जी ने न सिर्फ हिन्दू धर्म का गौरव बढ़ाया बल्कि पुरे विश्व में भारतीय संस्कृति और सभ्यता का परचम लहराया ।
विवेकानंद जी के विचारों में वह क्रांति और तेज था, जो सारे युवाओं को नई चेतना और सकारात्मक ऊर्जा से भर देता था ।
जब भारत अंग्रेजो का गुलाम था और उनके जुल्म सह रहा था, तब विवेकानन्द जी ने समाज के लोगो को जगाया और उनमे नई ऊर्जा का संचार किया ।
स्वामी जी को यु्वाओं से बड़ी उम्मीदें थीं । उनके विचार और आदर्श आज भी लोगो के लिए प्रेरणा के स्त्रोत बने हुए हैं।
25 साल की उम्र में अपने गुरु से प्रेरित होकर उन्होंने सांसारिक मोह माया त्याग कर सामाज की भलाई के लिए सन्यासी बन गये थे ।
स्वामी विवेकानन्द अपनी आखिरी सांस तक समाज की भलाई के लिए काम करते रहे ।
गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने एक बार कहा था यदि आप भारत को जानना चाहते हो तो विवेकानन्द को पढ़िये । उनमें आप “उनमे कुछ सकारात्मक ही पायेंगे, नकारात्मक कुछ भी नहीं” ।
स्वामी विवेकानन्द के अनुसार भारत भूमि ही यह वह भूमि है जहाँ बड़े बड़े महात्माओं और ऋषियों का जन्म हुआ था ।
यही संन्यास एवं त्याग की भूमि है ।
स्वामी विवेकानन्द अंग्रेजी शिक्षा के खिलाफ थें | क्योंकी अंग्रेजी शीक्षा उन्हें अव्यावहारिक लगती थी ऐसी शीक्षा होनी चाहिए जो व्यावहारिक हो | बच्चों के वास्तविक जीवन में काम आती हो । वे व्यावहारिक शिक्षा को व्यक्ति के लिए उपयोगी मानते थे ।
वह ऐसी शिक्षा चाहते थे जिससे बालक का मानसिक और शारीरिक विकास हो सके । शिक्षा का उद्देश्य बच्चों को आत्मनिर्भर और स्वावलम्बी बनाना होना चाहिए ।
शिक्षा –
1871 - ईश्वर चंद्र विद्यासागर के मेट्रोपोलिटन संस्थान में प्रवेश
1879 - प्रेसीडेंसी कॉलेज कलकत्ता में प्रवेश
1880 - जनरल असेम्बली इंस्टीट्यूशन में प्रवेश
1881 - ललित कला की परीक्षा उत्तीर्ण की,
1884 - बी. ए. परीक्षा उत्तीर्ण
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